श्री आशुतोष महाराज जी
(संस्थापक एवं संचालक, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान)
वसंत में संस्कृत धातु ‘वस’ का अर्थ है- ‘चमकना’ अर्थात् वसंत ऋतु प्रकृति की पूर्ण यौवन अवस्था है। ऐसा लगता है, मानो वसंतोत्सव पर प्रकृति ने रंग-बिरंगी सुंदर ओढ़नी को धारण कर लिया हो। इस सुन्दरता के साथ और भी बहुत सी गहरी प्रेरणाएँ लेकर आता है, बसंत पंचमी का पर्व। आइए विभिन्न कालखंडों के सफर को तय कर इनमें निहित आध्यात्मिक प्रेरणाओं को ग्रहण करते हैं। सतयुग की बसंत बेला से संदेशः बसंत पंचमी को विद्या, बुद्धि व ज्ञान की देवी माँ सरस्वती के आविर्भाव का मंगल दिवस जाना जाता है। साथ ही यह देवी लक्ष्मी की आराधना का भी पुण्य दिवस है। पुराणों के अनुसार बसंत पंचमी के पावन पुनीत अवसर पर ही सिन्धु-सुता माँ रमा ने भगवान विष्णु को वर रूप में प्राप्त किया था। इसी दिन संपूर्ण सृष्टि के संरक्षक का शक्ति से, पुरुष का प्रकृति से महासंगम हुआ था। अध्यात्म की भाषा में, सतयुग का यह मंगल मिलन लक्ष्य प्राप्ति का द्योतक है। हर मानव तन प्राप्त जीवात्मा के जीवन का लक्ष्य है, ईश्वर से चिर मिलन। वसंत पंचमी का पर्व हमें याद दिलाता है कि हम हर संभव प्रयास करें कि हमारे कदम ईश्वर की ओर शीघ्रता से बढ़ें।
त्रेता की बसंत बेला से संदेशः त्रेतायुगीन अवतार भगवान राम ने बसंत पंचमी के पावन दिन ही माँ शबरी की कुटिया को अपने श्री चरणों से निहाल किया था। आज भी दंडकारण्य के वनवासी उस शिला को पूजते हैं, जिस पर बैठकर प्रभु श्री राम ने बड़े चाव से भीलनी शबरी के प्रेम भरे जूठे बेरों को खाया था। त्रेता में भक्त का अपने प्रभु से मिलन का दिवस है यह वसंत पंचमी! इसी दिन ही प्रभु श्री राम से नवधा भक्ति को पाकर माँ शबरी मुक्त हो गई थीं। यह अमिट गाथा ज्ञान पिपासुओं को ब्रह्मनिष्ठ गुरु को धारण करने का महान सन्देश देती है। गुरु से ज्ञान प्राप्त कर उनके मार्गदर्शन में बढ़ अपने जीवन को पूर्णत्व के शिखर पर पहुँचाने का महोत्सव है- बसंत पंचमी!
द्वापर की बसंत बेला से संदेशः शारदीय महारास जो वृन्दावन में हुआ था, उसके अतिरिक्त एक नैमित्तिक रास की चर्चा भी ग्रंथों में मिलती है। कहा जाता है कि यह रास श्री कृष्ण ने भक्तों के संग परासौली-चन्द्र सरोवर के किनारे बसंत पंचमी के दिन किया था। इसलिए बसंत पंचमी प्रेरणा देती है कि शुद्ध भावों से प्रभु को ऐसा सच्चा प्रेम करो कि वे तुम्हारे संग आनंद नृत्य करने को प्रस्तुत हो जाएँ।
कलिकाल की बसंत बेला से संदेशः कलिकाल की यह घटना भले ही भक्त और भगवान के मिलन की न हो। पर अपने आराध्य के लिए मर मिटने के अदम्य जज्बे को पूर्णतः संजोए हुए है। अपने ईष्ट के लिए कुर्बानी की अनूठी मिसाल है यह ऐतिहासिक गाथा! यह बलिदान कथा है, 14 वर्षीय बालक हकीकत राय की।
मृत्यु के बदले में उसे इस्लाम कबूल करने को कहा गया। पर हकीकत ने अपने धर्म को त्याग ने से कई गुणा बेहतर मौत का वरण करना उचित समझा। सभी के समझाने पर भी वह टस से मस नहीं हुआ।
पर इतने भोले बच्चे को मौत के घाट उतारने के नाम पर जल्लाद की रूह काँप उठी। लेकिन निडर हकीकत जल्लाद को तलवार पकड़ाते हुए बोला- ‘मैंने अपने धर्म का निर्वाह किया है, आप अपने का करें।’ कहते हैं, तब एक अद्भुत कौतुक घटा। हकीकत का शीश धरती पर न गिर, आकाश मार्ग की ओर अग्रसर हो गया। हकीकत की यह शहादत 23 फरवरी, 1734 को बसंत पंचमी के दिन ही हुई थी। इतिहास में ऐसे पात्र अमर हो जाते हैं, जो धर्म को जानकर उसके प्रति एकनिष्ठ समर्पण करते हैं। अपने प्राण तक न्यौछावर करने से गुरेज नहीं करते। छोटे से हकीकत का यह बलिदान हमें अपने धर्म पर अडिग रहना सिखाता है। वास्तव में पूर्ण गुरु से ज्ञान प्राप्त कर उनके मार्गदर्शन में बढ़ अपने जीवन को पूर्णत्व के शिखर पर पहुँचाने का महोत्सव है, बसंत पंचमी। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से आप सभी को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।