देहरादून। उत्तराखंड में हुई अपनी तरह की इस पहली प्रक्रिया में मैक्स सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल, देहरादून के डॉक्टरों की एक टीम ने रोटा एब्लेशन और कोरोनरी शॉकवेव लिथोट्रिप्सी की संयुक्त प्रक्रिया का इस्तेमाल करके एक 67 वर्षीय मरीज की जान बचाई। मैक्स अस्पताल, देहरादून में डॉ. प्रीति शर्मा एवं डॉ. पुनीश सदाना ने उस मरीज की गंभीर रूप से केल्सीकृत और ब्लॉक्ड आर्टरी को खोलने की प्रक्रिया की, जिसे हाल ही में दिल का दौरा पड़ा था
बुधवार को मैक्स हॉस्पिटल में आयोजित प्रेस वार्ता में इस केस की प्रक्रिया की ज़रुरत के बारे में बताते हुए, डॉ प्रीति शर्मा- एसोसिएट डायरेक्टर ने कहा कि “एंजियोप्लास्टी और स्टेंटिंग करने के दौरान कैल्सिफिकेशन की दिक्कत 20.25 प्रतिशत रोगियों में होती है। ऐसा खास कर उन रोगियों में होता है जो विशेष रूप से क्रोनिक मधुमेह या गुर्दे की बीमारी से ग्रस्त हैं, जिन्हें लंबे समय से धमनी में रुकावट है या जिनकी पहले बाई पास सर्जरी हो चुकी है। एंजियोप्लास्टी और स्टेंटिंग के विफल होने पर दूसरा विकल्प यह होता है कि अत्यंत उच्च दबाव वाले बैलून का उपयोग करके एंजियोप्लास्टी की मदद से कैल्शियम को हटाना लेकिन अधिक कैल्शियम जमा होने के कारण इस बात का डर था कि यह तकनीक या तो काम नहीं करेगी या इसके कारण धमनी के फटने या परफोरेशन जैसी जटिलाएं हो सकती है। मैक्स अस्पताल, देहरादून में हम नियमित रूप से गंभीर कैल्सीफाइड धमनियों के लिए रोटा एब्लेशन के साथ एंजियोप्लास्टी करते हैं, लेकिन इस मामले में कैल्शियम की मात्रा के कारण और खास तौर पर, क्योंकि कैल्शियम गहरा था, रोटा एब्लेशन अकेले एक आदर्श विकल्प नहीं था। इस रोगी/मामले के लिए, हमें रोटा को शॉकवेव इंट्रावास्कुलर लिथोट्रिप्सी (आईवीएल) के साथ करना पड़ा। रोटा एब्लेशन का इस्तेमाल सतही कैल्सीफिकेशन को हटाने के लिए और आईवीएल को डीप कैल्सीफिकेशन के लिए किया जाता है।
इस मरीज को पहले बाईपास सर्जरी का सुझाव दिया गया था, लेकिन उसकी खराब पल्मोनरी फंक्शन और सांस की गंभीर समस्याओं (सीओपीडी) के कारण उसे एंजियोप्लास्टी के लिए ले जाया गया। इस नई तकनीक के इस्तेमाल के बाद 67 वर्षीय हृदय रोगी का जीवन बचाने में मैक्स अस्पताल के चिकित्सक कामयाब हुए। प्रेसवार्ता में मैक्स हॉस्पिटल देहरादून यूनिट हैड व उपाध्यक्ष(ऑपरेशन) डॉ. संदीप सिंह तंवर, हैड कॉरपोरेट कम्यूनिकेशनस् (जीएम) तनुश्री रॉय चौधरी, मैनेजर मार्केटिंग एण्ड सेल्स गौरव कंसवाल व पीआरओ नितिका भारद्वाज मौजूद रहे।
पिछली तकनीक की तुलना में बड़ी प्रगतिः डॉ. सदाना
देहरादून ।डॉ. पुनीश सदाना एसोसिएट डायरेक्टर ने कहा कि यह अल्ट्रा-हाई-प्रेशर बैलून या रोटेटरी ड्रिल जैसी मुश्किल ब्लॉकेज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली पिछली तकनीकों की तुलना में एक बड़ी प्रगति है, जिनका इस्तेमाल करना बेहद मुश्किल है और जिनसे धमनी के फटने का खतरा रहता है। तीनों धमनियों में गंभीर कैल्सीफिकेशन के कारण, हमने इस मामले में लिज़न की तैयारी के लिए रोटा और आईवीएल का इस्तेमाल किया। गुब्बारे को हृदय धमनी के अंदर डाला गया और ब्लॉकेज की जगह कैल्शियम को तोड़ने के लिए सोनिक पल्स को पहुंचाया गया। इस प्रक्रिया से कैल्शियम का जमाव कमजोर हो गया और कैल्शियम टूट गया जिससे बैलून को फैलने का मौका मिला और स्टेंट को स्थापित करना आसान और सुरक्षित हो गया। इसके बाद रुकावट आसानी से कम दबाव में खुल गई और बाद में स्टेंट इम्प्लांटेशन ने इसे बेहद सफल प्रक्रिया बना दिया।
क्या है नई आईवीएल तकनीक
देहरादून ।हाल ही में भारत में लॉन्च की गई, यह तकनीक- आईवीएल न केवल बड़े कैल्शियम बोझ के साथ कोरोनरी धमनियों में जटिल घावों को मैनेज करने में मदद करती है, बल्कि उन लोगों के लिए भी आशा की किरण लाती है जो एडवांस कोरोनरी आर्टरी डिजीज (सीएडी) से ग्रस्त हैं, एनजाइना या दिल का दौरा के साथ जिसमे कैल्शियम जमा होने की वजह से ब्लॉकेज बेहद जटिल हो जाती है। इस प्रक्रिया के साथ, गंभीर जटिलताओं के बिना चुनौतीपूर्ण केल्सीकृत घावों को मॉडिफाई करना संभव है, जो पारंपरिक उपकरणों के साथ एक संभावना थी। कोरोनरी इमेजिंग (आईवीयूएस/ओसीटी) का उपयोग जटिल प्रक्रियाओं में काफी किया जाता है ताकि प्रक्रिया की योजना बनाने और पिछली प्रक्रिया के नतीजों को जांचने के बारे में विशेषज्ञों का गाइड किया जा सके।