अपने हुए पराये, भारत की नागरिकता छोड़ने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है

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Indians renounced their citizenship, The figure has been steadily increasing over the past few years
Indians renounced their citizenship, The figure has been steadily increasing over the past few years

दिसम्बर 2024 में विदेश राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने संसद में बताया था कि 2023 में देश की नागरिकता छोड़कर विदेशों में बसने वाले भारतीयों की संख्या 216219 थी, जबकि 2014 में यह संख्या 129328 और वर्ष 2011 में 122819 थी।

Indians renounced their citizenship, The figure has been steadily increasing over the past few years

प्रधानमंत्री मोदी के शब्दों में भारत विकसित है, यहाँ की अर्थव्यवस्था दुनिया में पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, यहाँ रोजगार की कमी नहीं है, शिक्षा व्यवस्था विश्वस्तरीय है, दुनियाभर से उद्योग भारत में आ रहे हैं, दुनियाभर में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी है – इन सब दावों के बीच हकीकत यह है कि देश की नागरिकता त्याग कर विदेशों में बसने वाले भारतीयों की संख्या साल-दर-साल बढ़ती जा रही है, इसी तरह शिक्षा और रोजगार के लिए विदेश जाने वालों की संख्या भी बढ़ रही है। अपने देश की शिक्षा व्यवस्था तो बांग्लादेश से भी खराब है क्योंकि बांग्लादेश के हिंसक दौर में भारतीय विद्यार्थियों की सुरक्षा का सवाल उठा था और रोजगार का आलम यह है कि यहाँ के युवा सक्रिय युद्ध क्षेत्रों में भी जान जोखिम में डाल कर हथियार चला रहे हैं। इन सबके बीच में सत्ता ध्रुवीकरण की राजनीति में और प्रधानमंत्री अडाणी का पड़ोसी देशों में व्यापार बढ़ाने में पूरी तरह लिप्त है, जिसे मीडिया अल्पसंख्यकों की भलाई बताने में जुटा है।

दिसम्बर 2024 में विदेश राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने संसद में बताया था कि 2023 में देश की नागरिकता छोड़कर विदेशों में बसने वाले भारतीयों की संख्या 216219 थी, जबकि 2014 में यह संख्या 129328 और वर्ष 2011 में 122819 थी। वर्ष 2011 से 2014 तक प्रतिवर्ष भारत चूड़ाने वाले भारतीयों की प्रतिवर्ष औसत संख्या 126119 थी जो वर्ष 2021 से 2023 के बीच 2 लाख से अधिक पर पहुँच गई। प्रधानमंत्री मोदी और उनके मंत्री-संतरी लगातार विकास का दावा ही नहीं बल्कि पहले की सरकारों को नकारा करार देते रहे हैं, ऐसे में सबसे बाद सवाल तो यही है कि तथाकथित विकसित भारत को लोग क्यों अलविदा कह रहे हैं। इस जानकारी का एक हास्यास्पद पहलू यह भी है कि विदेश मंत्रालय के अनुसार देश छोड़ने वालों का राज्यवार आंकड़ा सरकार के पास उपलब्ध नहीं है। यह हास्यास्पद इसलिए है क्योंकि जिस देश में महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की माँ किस राज्य से थी इसे प्रधानमंत्री बड़े गर्व से बताते हों उस देश में किसी राज्य से कितने लोग अब भारत के नागरिक नहीं हैं यह जानकारी नहीं है।

विदेशों में पढ़ने जाने वाले छात्रों की संख्या का हिसाब मोदी सरकार किस तरह रखती है, इसका उदाहरण संसद में दिए जाने वाले बयानों में मिलता है। संसद में विदेश मंत्रालय और शिक्षा मंत्रालय एक ही वर्ष में भारत से बाहर जाने वाले छात्रों की संख्या अलग-अलग बताते हैं। मार्च 2025 में विदेश मंत्रालय द्वारा संसद में बताया गया कि वर्ष 2024 में 760073 छात्र, 2023 में 894783 और 2022 में 752111 भारतीय छात्र विदेशों में पढ़ने गए। जाहिर है शिक्षा

व्यवस्था दुरुस्त करने, नए आईआईटी, आईआईएम और एम्स खोलने और विदेशी यूनिवर्सिटी को देश में खोलने के तमाम दावों के बीच भी हरेक वर्ष लगभग 8 लाख से अधिक छात्र विदेशों में पढ़ने चले जाते हैं। दिसम्बर 2024 में भी संसद में शिक्षा मंत्रालय ने विदेश जाने वाले छात्रों की संख्या प्रस्तुत किया था। मोदी सरकार के आंकड़ों की बाजीगरी का आलम यह है कि शिक्षा मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत आँकड़े विदेश मंत्रालय के आंकड़ों से अलग थे। शिक्षा मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2024 में 759064 छात्र, 2023 में 892989 और वर्ष 2022 में 750365 भारतीय छात्र शिक्षा प्राप्त करने विदेशों में गए।

मोदी सरकार के अनुसार देश में रोजगार का कोई आंकड़ा नहीं है पर रोजगार की कोई कमी भी नहीं है, पर तथ्य यह है कि विदेशों में रोजगार की तलाश में वर्ष 2024 में 1 करोड़ 85 लाख भारतीय श्रमिक विदेशों में गए। वर्ष 1990 में यह आंकड़ा महज 66 लाख था, यानि वर्ष 1990 से 2024 के बीच विदेशों में रोजगार की तलाश करते भारतीयों की संख्या तीन गुना तक बढ़ गई। वैश्विक स्तर पर 1990 में विदेशों में रोजगार की तलाश करते कुल लोगों में से मजह 4.3 प्रतिशत भारतीय श्रमिक थे, पर वर्ष 2024 तक यह आंकड़ा 6 प्रतिशत से भी अधिक पहुँच गया।

इतनी बड़ी संख्या में भारतीय श्रमिकों और छात्रों के विदेश जाने पर यह आवश्यक है कि हम विदेशों में उनकी स्थिति और सुरक्षा को भी समझें। इस वर्ष 20 मार्च को केंद्र में विदेश मंत्रालय में राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने राज्य सभा में एक लिखित जवाब में बताया कि दुनिया के 86 देशों में कुल 10152 भारतीय जेलों में हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह संख्या मंत्रालय में प्राप्त जानकारी के अनुसार है, अधिकतर देश कैदियों के बारे में जानकारी साझा नहीं करते – जाहिर है विदेशों में भारतीय कैदियों की संख्या इससे अधिक भी हो सकती है। जानकारी के अनुसार सबसे अधिक 2633 कैदी सऊदी अरब में, इसके बाद 2518 संयुक्त अरब अमीरात में, 1317 नेपाल में, 611 कतर में, 387 कुवैत में, 338 मलेशिया में, 288 यूनाइटेड किंगडम में और 266 पाकिस्तान में हैं।

इस उत्तर में आगे विदेशों में भारतीयों को मृत्युदंड या फांसी के बारे में जानकारी दी गई है। संसद में किस तरह भ्रामक जानकारी दी जाती है, यह उत्तर उसका एक नमूना है। 20 मार्च को राज्य सभा को बताया गया कि संयुक्त अरब अमीरात में 25 भारतीयों को मृत्यदंड दिया गया है पर अभी तक इस आदेश का कार्यान्वयन नहीं हुआ है, जबकि फरवरी के अंतिम सप्ताह से मार्च के पहले सप्ताह के बीच में वहाँ कम से कम तीन भारतीयों को फांसी पर चढ़ा दिया गया।

इस उत्तर के अनुसार 8 देशों में 49 भारतीय मृत्युदंड की सजा भुगत रहे हैं, इनमें सबसे अधिक 25 संयुक्त अरब अमीरात में, 11 सऊदी अरब में और 6 मलेशिया में हैं। वर्ष 2020 से 2024 के बीच 6 देशों में 47 भारतीयों को फांसी पर चढ़ाया गया, पर आश्चर्य यह है कि उत्तर के अनुसार इसमें से एक भी मृत्युदंड संयुक्त अरब अमीरात में नहीं दिया गया। मौत के घाट उतारे जाने वाले 47 भारतीयों में से अकेले कुवैत में 25 भारतीयों को यह सजा दी गई, इसके बाद सऊदी अरब में 8 और जिम्बॉब्वे में 7 भारतीयों को मृत्युदंड दिया गया।

इससे पहले दिसम्बर 2024 में संसद में जानकारी देते हुए विदेश राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने बताया था कि वर्ष 2023 में विदेशों में 86 भारतीयों पर घातक हमले किए गए या उनकी हत्या कर दी गई। इसमें सबसे अधिक 12 हमले अमेरिका में और इसके बाद कनाडा, यूनाइटेड किंगडम और सऊदी अरब में से प्रत्येक में 10-10 घातक हमले किए गए। प्राप्त जानकारी के अनुसार विदेशों में भारतीयों पर हमलों की संख्या साल-दर-साल बढ़ती जा रही है – वर्ष 2021 में 29 हमले, 2022 में 57 हमले और वर्ष 2023 में 86 हमले। इसी उत्तर में यह भी बताया गया कि श्रीलंका और पाकिस्तान द्वारा भारतीय मछुआरों को कैद कर जेल में डालने की संख्या भी बढ़ रही है।

एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय श्रमिकों द्वारा देश में वर्ष 2024 में 129.4 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा आई। श्रमिकों द्वारा अपने देश में पैसे भेजे जाने के मामले में पिछले कई वर्षों से भारत दुनिया में पहले स्थान पर है, और यह श्रमिकों द्वारा अपने देश में 100 अरब डॉलर से अधिक मुद्रा भेजने वाला पहला और अकेला देश भी है। भारतीय श्रमिकों द्वारा अपने देश में भेजी जाने वाली मुद्रा में लगातार बृद्धि दर्ज की जा रही है – वर्ष 2010 में यह राशि 53.48 अरब डॉलर, 2015 में 68.91 अरब डॉलर, 2020 में 83.15 अरब डॉलर और 2022 में 112 अरब डॉलर थी। जाहिर है, यह बृद्धि अपने देश में रोजगार की दयनीय स्थिति ही बयान करती है। इसके बाद के देश भारत से बहुत पीछे हैं। दूसरे स्थान पर 68 अरब डॉलर के साथ मेक्सिको, तीयसरे स्थान पर 48 अरब डॉलर के साथ चीन, चौथे स्थान पर 40 अरब डॉलर के साथ फ़िलिपींस और पांकहेवें स्थान पर 33 अरब डॉलर के साथ पाकिस्तान है।

वर्ल्ड माइग्रेशन रिपोर्ट 2024 के अनुसार भले ही विदेशों में बेहतर भविष्य की तलाश में श्रमिक जाते हों पर इनका हरेक तरीके से इनका शोषण किया जाता है। इन्हें कोई अधिकार नहीं मिलते, इन्हें अनुबंध से भी कम पैसे मिलते है, इनसे बंधुआ मजदूरों जैसा व्यवहार किया जाता है और अनेक श्रमिक तो जितना पैसा खर्च कर विदेशों में पहुंचते हैं, उतना भी नहीं कमा पाते।

फरवरी 2024 में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने लोकसभा में बताया था कि वर्ष 2018 के बाद से विदेशों में पढ़ाई के लिए गए 403 भारतीय छात्रों की मौत हो गई। इसमें सबसे अधिक 91 मौतें कनाडा में और यूनाइटेड किंगडम में 48 मौतें हुईं। इसके 6 महीने बाद ही, जुलाई 2024 में संसद में विदेश राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने पिछले 5 वर्षों में 41 देशों में 633 भारतीय छात्रों के मौत की जानकारी दी – सबसे अधिक 172 कनाडा में, 108 अमेरिका में, 58 यूनाइटेड किंगडम में, 57 ऑस्ट्रेलिया में, 37 रूस में, और 24 जर्मनी में। मार्च 2025 में राज्य सभा में विदेश मंत्रालय ने बताया था कि विदेशों पर भारतीय छात्रों पर हिंसक हमलों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। वर्ष 2022 में महज 4 हिंसक हमले किए गए, पर वर्ष 2023 में यह संख्या 28 और वर्ष 2024 में 40 तक पहुँच गई।

भारत के पूंजीपति विदेशों में बसते जा रहे हैं और गरीब रोजगार के तलाश में बाहर जा रहे हैं। आश्चर्य यह है कि विदेशों में, विशेषकर मध्य-पूर्व के देशों में, बड़ी संख्या में श्रमिकों की मौत के बाद भी प्रधानमंत्री मोदी की किसी भी देश से द्विपक्षीय वार्ता में श्रमिकों की स्थिति और बेहतर सुविधाएं चर्चा में नहीं रहता। विदेशों में गए भारतीयों के पूरे आँकड़े भी सरकार के पास नहीं हैं, तभी हरेक वक्तव्य में आँकड़े बदल जाते हैं। जब विदेशों से भारतीय सकुशल आ जाते हैं तब प्रधानमंत्री मोदी का महिममंडन किया जाता है और जब विदेशों में भारतीय मरते हैं तब मीडिया और विपक्ष दोनों ही सत्ता से कोई सवाल नहीं करते।

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