देहरादून। देश की आजाद से पूर्व वर्ष 1929 में तैयार हुए वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) के ऐतिहासिक भवन की दरार करीब 22 साल के लंबे इंतजार के बाद भर पाएगी। सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीबीआरआइ) की सलाह पर केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) ने दरारों का उपचार शुरू कर दिया है। हालांकि, मरम्मत की राह में बजट का अड़ंगा लगता दिख रहा है। क्योंकि पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से अभी तक महज दो करोड़ रुपये ही मिल पाए हैं। यह धनराशि पिछले वर्ष सितंबर में मिल चुकी थी और 14 करोड़ रुपये का इंतजार किया जा रहा है। भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (आइसीएफआरई) के महानिदेशक एएस रावत के मुताबिक चमोली में वर्ष 1999 में आए 6.6 मैग्नीट्यूट के भूकंप के दौरान एफआरआइ के मुख्य भवन के पीछे बड़ी दरार उभर आई थी। इसके अलावा भवन के कुछ अन्य हिस्सों पर भी हल्की दरारें उभर आई थीं। मुख्य भवन के पीछे की दरार 12 से 13 मिलीमीटर मोटाई व करीब 30 मीटर लंबाई में है। दरारों की मरम्मत में इसलिए भी विलंब होता रहा, क्योंकि विशेष तकनीक से ही मरम्मत की जानी थी। जिससे भवन के मूल स्वरूप में किसी तरह की छेड़छाड़ न हो। भवन की शैली ग्रीक रोमन और औपनिवेशिक है और इसका अपना ऐतिहासिक महत्व भी है।वर्ष 2018 में सीपीडब्ल्यूडी को मरम्मत का जिम्मा दिया गया। इसके बाद सीपीडब्ल्यूडी के अभियंताओं ने सीबीआरआइ से सलाह ली। सलाह मिलने के बाद भी उचित निर्माण कंपनी नहीं मिल पाई। वर्ष 2020 में जब कंपनी का चयन कर लिया गया, तब इस्टीमेट केआधार पर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 16.86 करोड़ रुपये स्वीकृत किए। आइसीएफआरई के महानिदेशक एएस रावत ने बताया कि सीपीडब्ल्यूडी ने दो साल में मरम्मत का लक्ष्य रखा है। दो करोड़ रुपये मरम्मत के लिए जारी किए जा चुके हैं। सात करोड़ रुपये और इसी साल दिए जाने थे, मगर अभी केंद्र से राशि नहीं मिल पाई है। बजट की कमी के चलते अभी मुख्य दरार को भरने का काम नहीं किया जा सका है। फिलहाल, अन्य कार्य किए जा रहे हैं।